07 मई, 2013

प्रियतम की वो बाट देखती, अब तक जाने क्यूँ बैठी है?


प्रियतम की वो बाट देखती, अब तक जाने क्यूँ बैठी है?



श्याम सुंदरी ये रात की बगी‍या,
दिन भर सोई,
ऊंघी - अलसी सी,
दिन के ढलते खिल जाती है |

बाट जोहती, राह देखती,
आतूर प्रियतम से मिलने को,
दिल की इक छोटी फरियाद,
बेचैन है साथी को कहने को |

उज्ज्वल शीतल रात की तह में,
अपने जीवन की सच्चाई को ओढ़े,
जब हवा भी ढंड से सिकुड़ी जाती,
वो दग्ध हो रही खुद की ज्वाला में |

हवा से पूछे, रात से पूछे,
अपनी हर इक बात से पूछे -
“द्वार खुला है माली सोया
जब चाहे जो चाहे आये” |

रात बीतती पल पल हर पल...

पूरब से सूरज की परछाई
नभ पर धीरे धीरे बढती,
पक्षी के कलरव की गूँज
माली ले रहा अंगड़ाई |

प्रियतम की वो बाट देखती,
अब तक जाने क्यूँ बैठी है?

क्यूँ नहीं जाती बगिया से बाहर,
अपने प्रेमी प्रियतम से मिलने,
सोच रहा हूं जा कर पुछूं,
क्या कोई परेशानी है?
जाती क्यूँ नहीं उसे-से मिलने,
जिसकी वो दीवानी है |

सोता हुआ वो बूढ़ा माली
लाठी टेकता, लंगड़ाता सा,
अबूझ पहेली, आँखों में प्रश्न लिए
धीरे-धीरे बढ़ता है |

प्यार-भरा वो स्नेहील चुम्बन
वक्त कर रहे, एक पिता का प्यार,
शायद यह वही प्यार था,
जिसने उसको रात में रोका,
अपने साथी से मिलने को.
“ द्वार खुला था आज़ादी थी,
फिर भी वो चुपचाप थी बैठी |”

04 जून, 2010

आओ हर वर्ष वृक्ष लगायें

  • पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर, अगर हम सब अपने - अपने क्षेत्र में सिर्फ एक पेड़ भी लगाएँ तो ये एक कमाल की सोच होगी। जरूरत है ख़ुद को बदलने की और प्रकृती के महत्त्व को समझने की.....
धन - धान्य से भरी धरा हो,
ऐसी सृष्टि आज बनायें,
आओ हर वर्ष वृक्ष लगायें।

बिन पानी है रोता जीवन,
रोती सृष्टि रोते तुम हम,
इन वृक्षों से धरा सजाएँ,
आओ हर वर्ष वृक्ष लगायें।

कविता कल भी जारी रहेगी, ब्लॉग पर बने रहें...... अतुल सिंह

23 फ़रवरी, 2010

दिल में तूफान कयों है?

आँखों में नमी, दिल में तूफान क्यों है?
आज मेरा दोस्त, परेशान क्यों है?

04 सितंबर, 2009

इस चिंगारी को एक बार सुलग जाने दो . .


इस चिंगारी को एक बार सुलग जाने दो ।
.
जो बंद रही,
इतने दिनों तक,
अंधकार की कोठरियों मे ।
उस तिल तिल जलती ज्योति को,
इस बार उजियारी फैला जाने दो ॥
.
जो रूह,
उनकी हैवानीयत सह,
आज तक कराहती रही ।
उस रूह को तन से जुदा कर के,
हैवानो से भिड़ जाने दो ॥
.
वो चिंगारी,
जो नस नस में,
गर्म लहू बन बहती रही,
उस गर्म लहू को आज हिया से
लावा बनके फूट जाने दो ॥
.
जो जीवन,
अब तक शून्य रहा,
सांसो की अवलम तारों से ।
उन उखड़ी सांसो की तारों को,
अंतर्मन से जुड़ जाने दो ॥
.
कर उद्विग्न,
ले दीपक को कर मे,
जग मे उजीयारी फैला जाने दो ।
खत्म करे जो तम का अंधेरा,
उस चिंगारी को ,
एक बार, सुलग जाने दो ॥
.
समाप्त
अतुल सिंह

01 सितंबर, 2009

एक शेर मेरा भी...



सपनो के महल,

आशाओं के संसार,

कब टूटे मुझको क्या पता,

इतना पता है तब तक....

ज़िन्दगी ग़र्द बन चुकी थी । ।
.
अतुल सिंह

28 अगस्त, 2009

जलता जीवन, जलते तुम हम

जलता ज़ीवन जलते तुम हम,
ख़त्म हो गई राहें सब ।
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आगे है घनघोर अँधेरा
दुःख की बदली छाई है ।
साथ मिलाकर छोड़ गए सब,
क्यूँ तू संग मेरे आई है ॥
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क्यूँ करू तुझसे प्रणय निवेदन,
क्या तू जीवन सार मिला ।
किया तिरस्कार तूने है अब तक,
क्यूँ अब तेरा प्यार जगा ॥
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तू ठहरी अलका का वैभव,
पर अवनी का मैं भी पुजारी हूँ ।
प्रेम सिखा कर चली गई जो,
उसका मैं आभारी हूँ ॥
.
प्रेम है क्या ये तू क्या जाने ,
मीरा की वो मूरत होती ।
जिससे मैंने किया प्रेम था,
प्रेम की सूरत वैसी होती ॥
.
क्यूँ डाले बाहों के घेरे ,
करती मुझको आलिंगन ।
मैं तो हूँ एक ठहरा पानी,
क्यूँ तू खोजे उसमे जीवन ॥
.
उसमे ज़ीवन नही मिलेगा,
फूल प्रेम का नही खिलेगा ।
जलता जीवन मेरा अब तक,
जो प्रेम करेगा वो भी जलेगा ॥
.
" जो प्रेम करेगा वो भी जलेगा "
समाप्त
अतुल सिंह