01 सितंबर, 2009

एक शेर मेरा भी...



सपनो के महल,

आशाओं के संसार,

कब टूटे मुझको क्या पता,

इतना पता है तब तक....

ज़िन्दगी ग़र्द बन चुकी थी । ।
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अतुल सिंह

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